दान जरूरतमंद को ही दिया जाना चाहिए। परंतु जरूरतमंदों में भी दान के लिए योग्य पात्र चुना जाता है। विवेकशील व्यक्ति जानता है कि जैसे उपजाऊ खेत में बोया हुआ बीज महाफलदायी होता है। वैसे ही उर्वरा क्षेत्र में बोया हुआ दान का बीज भी महाफलदायी होता है।
वह जानता है कि जो खेत असम हो, जिसमें बहुत तृण उगे हों, झाड़-झंखाड़ उगे हों, जिसमें बहुत कंकड़-पत्थर हों, जिसमें जुताई नहीं हुई हो, जो बहुत चट्टानी हो जिसमें पानी आने का रास्ता न हो, जिसमें से पानी बाहर निकलने का रास्ता न हो, जिसमें न नाली हो, न मेड़ हो, ऐसे ऊसर खेत में बोया हुआ बीज महाफलदायी नहीं होता। इसी प्रकार जिस व्यक्ति की वाणी शुद्ध न हो, जिसके शारीरिक कर्म शुद्ध न हों, जिसकी आजीविका शुद्ध न हो, जिसके प्रयत्न-प्रयास शुद्ध न हों, जिसकी स्मृति शुद्ध न हो, जिसकी समाधि शुद्ध न हो, जिसका चिंतन-मनन शुद्ध न हो, जिसकी दर्शन-दृष्टि शुद्ध न हो, ऐसे दुर्जन, दुःशील, दुराचारी, दुःसमाधिस्थ और दुष्प्रज्ञ व्यक्ति को दिया हुआ दान महाफलदायी नहीं हो सकता।
जो खेत समतल हो, झाड़-झखाड़-तृण विहीन हो, कंकड़-पत्थर विहीन हो, जो चट्टानी नहीं हो, जिसमें गहरी जुताई हुई हो, जिसमें पानी लाने का रास्ता हो, जिसमें से पानी निकालने का रास्ता हो, जिसमें आवश्यक नाली हो, मेड़ें हों, वैसे उपजाऊ खेत में बोया हुआ बीज सचमुच महाफलदायी होता है। ठीक इसी प्रकार जिस व्यक्ति की वाणी शुद्ध हो, शारीरिक कर्म शुद्ध हों, आजीविका शुद्ध हो, प्रयत्न-प्रयास शुद्ध हों, स्मृति शुद्ध हो, समाधि शुद्ध हो, चिंतन-मनन शुद्ध हो, दर्शन-दृष्टि शुद्ध हो, ऐसे सज्जन, सुशील, सदाचारी, सुसमाहित चित्त, सप्रज्ञ व्यक्ति को दिया हुआ दान सचमुच महाफलदायी होता है।
ऐसा व्यक्ति चाहे जिस जाति, कुल, वर्ण, वर्ग, संप्रदाय का हो, परंतु वह हर माने में श्रमण ही है, पवित्र ही है, पावन ही है। ऐसा व्यक्ति धर्म-पथ का पथिक है। अतः दान का बीज बोने के लिए सचमुच उपजाऊ पुण्य-क्षेत्र है।